“रूढ़ियों को तोड़कर!
परंपराएँ मोड़कर!
पुरुष प्रमुख समाज में,
पुरुष को पीछे छोड़कर!
अए नारी तू! आगे निकल!
हक के लिए तू कर समर!!
१. सुनेगी तू हर क़दम पे कि नारी दुर्बल होती है।
मगर मग सहज होता है वहीं, जहाँ चाह प्रबल होती है।
नर की ही भांति तुझमें भी, प्रच्छन्न शक्ति होती है।
हर महानर के पीछे भी एक नारी ही तो होती है।
आशना होगी सफल, कसके कमर रण में उतर।
अए नारी तू! आगे निकल!
हक के लिए तू कर समर!!”
२”हिम्मत क्यूँ इसकी इतनी है, बलात्कार……. ये करे?
शिकस्त इसको ऐसी दे,
जतन ना फिर ऐसा करे!
तेरी ही अस्मत लूट के,
मजबूर ये तुझे करे!
तू स्वयं शक्ति रूपा है,
फिर आत्मदाह क्यूँ करे?
ना हो जहाँ दुर्गा सफल..
वहाँ काली का भी रूप धर!
अए नारी तू! आगे निकल!
हक के लिए तू कर समर!!”
©डॉ. शीताभ शर्मा
हिन्दी विभागाध्यक्ष
कानोड़िया महिला महाविद्यालय