Unwrapping the Truth: Is Green Packaging Really Green
Green, Green, Green: The term ‘green‘ has become a buzzword, but the question remains: can buzzwords translate into tangible practices? Bridging the gap between words
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B A Part I Semester I Mid Term Time Table October 2025 B A Part II Semester III Mid Term Time Table October 2025 B
One-day Symposium on the theme “The Gothic in Indian English Writings and Rajasthani Literature: A Comparative Approach” भारतीय अंग्रेज़ी लेखन और राजस्थानी साहित्य में गॉथिक : एक तुलनात्मक दृष्टिकोण विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी जयपुर, 8 सितम्बर। साहित्य अकादमी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं कनोडिया पीजी महिला महाविद्यालय, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय अंग्रेज़ी लेखन और राजस्थानी साहित्य में गॉथिक : एक तुलनात्मक दृष्टिकोण” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 8 सितम्बर 2025 को किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रख्यात लेखक एवं राजनयिक विकास स्वरूप के मुख्य उद्घाटन वक्तव्य द्वारा हुआ। अपने भाषण से उन्होंने गॉथिक षैली की अनुकूलता को महाद्वीपों और परम्पराओं में रेखांकित किया। अपने उपन्यास Q&A का संदर्भ देते हुये श्री स्वरूप ने गॉथिक को सामाजिक अन्यायों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने का सक्षत माध्यम बताया। उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के उप सचिव डॉ. शनमुखानन्दा ने दिया। उन्होंने बताया कि कैसे भारतीय मौखिक कथाओं की परम्पराऐं आज उपन्यास में रूपान्तरित हो रहीं है। प्रारंभिक वक्तव्य कनोडिया पीजी महिला महाविद्यालय की अंग्रेजी विभाग की व्याख्याता एवं सिम्पोजियम समन्वयक डॉ. प्रीति शर्मा ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक मालाश्री लाल ने अंग्रेजी साहित्य में गॉथिक की सीमाओं पर प्रकाश डाला, विशेषकर विभत्स एवं हिंसक चित्रण पर। कनोडिया पीजी महिला महाविद्यालय की निदेशक डॉ. रश्मि चतुर्वेदी ने गॉथिक के मनोवैज्ञानिक पक्षों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य गॉथिक की गहराईयों को समेटता है। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सीमा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया और सभी वक्ताओं के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। प्रथम सत्र का विषय “सामाजिक आलोचना के रूप में गॉथिक : महिलाएँ, जाति और वर्ग” रहा जिसकी अध्यक्षता मालाश्री लाल ने की। वक्ताओं में चंद्रप्रकाश देवल ने सामाजिक परिर्वतनों के संदर्भ में गॉथिक पर अपने विचार रखे। राजस्थानी लोककथाओं से उन्होंने ‘भूत रो कटोरो’ का उल्लेख किया जिसमें स्त्रियों की सांस्कृतिक भूमिका को रेखांकित किया। रीमा हूजा ने गॉथिक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा राजस्थान के विषाल मरूस्थल जैसे दृष्य पारम्परिक लोककथाओं में गॉथिक के दिव्य स्वरूप को और प्रबल बना देते है। निदेशक डॉ. रश्मि चतुर्वेदी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि भाषा मानव की परिधि से परे जीवन्त अनुभव को व्यक्त करने में सीमित है।